अफ्रीका
अफ्रीका :
मिश्र अफ्रीका खंड का ही एक देश है जिसके विषय में "प्राचीन सभ्यायें" में बताया गया है, अब पूरे खंड का एक साथ विचार यहाँ प्रस्तुत है।
बैबिलोनिया तथा ग्रीस तक ईसा पूर्व के कल में जानेवाले भारतीय भूमार्ग से अफ्रीका को भी गत ४००० वर्षों से जाते रहे हैं। वैसे ही वे २५००-३००० मिल का समुद्र पर करते हुए भी गए हैं। अपने साथ वे अपनी संस्कृति भी लेते गए। अनेक धर्माचार्यों, गणितज्ञ तथा अन्य विषयों के विद्वान भारतीय वहाँ जाकर स्थायी निवासी बने। दक्षिण रोडेशिया में भारतीय संस्कृति के अनेक अवशेष मिले हैं। वहाँ के पर्वतीय क्षेत्र में भारतीय शैली कि गुफाएं मिली हैं।
प्रो बीटी ने ३०० अफ्रीकी जमातों का गहराई से अध्ययन कर ई १९६९ में "रिलीजंस, ट्रेडिशंस एंड फिलोसोफी ऑफ़ अफ्रीकंस" पुस्तक लिखी। उसके अनुसार इन अफ्रीकियों कि इश्वर, जन्म-मृत्यु, समाज में स्त्रियों का स्थान, शिक्षा पद्दति आदि विषयक कल्पनाएँ और व्यव्हार भारतीयों के जैसे ही है। उनका विश्वास है कि सृष्टि का आदि तत्व और सृजनशक्ति स्त्रियों में रहती है। भारतीय संस्कृति तथा भारतीयों कि मानसिकता से वे एकरूप दीखते हैं।
भारत कि खोज में जब वास्को-डी-गामा जन अफ्रीका में केप ऑफ़ गुड होप पहुंचा तब वहाँ पर उसने एक भारतीय व्यापारी कि अपनी नौका से तीन गुना बड़ी नौका देखि और उसी भारतीय के मार्गदर्शन से वह अफ्रीका से भारत आया।
देव सरोवर :
मिश्र कि लोकमाता नदी का "नील" नाम शुद्ध संस्कृत है, ऐसा पाश्चात्य अन्वेषक कहते हैं। प्राचीन काल के भारतीयों के भौगोलिक ज्ञान के विषय में जिन्होंने गहरा अध्ययन किया है वे कर्नल विलफोर्ड कहते हैं कि "भारतीय पुराणों में वर्णित शंख कि आकर वाला द्वीप अफ्रीका ही है "। नील नदी के उद्गम के विषय में उन्होंने भारतीय पुराणों के आधार पर "एशियाटिक रिसर्चेस खंड 3" में लिखा है कि "अमर या देव सरोवर में नील नदी का उद्गम है। सरोवर के आसपास के प्रदेश को चांद्रस्थान कहते थे। यह देव सरोवर चन्द्र पर्वतों में है। नील नदी शंखब्दी (भू मध्य सागर) में मिलती है "। पूर्व अफ्रीका और यूरोप का उन्होंने एक मानचित्र बनाया था। उसी मानचित्र और विलफोर्ड के भारतीय पुराणों पर आधारित एक लेख के आधार मर जॉन हेमिंग स्पेक ने नील नदी का उद्गम स्थल ढूंढ निकाला, ऐसा उन्होंने स्वयं लिखा है। देव सरोवर का नाम आज विक्टोरिया लेक है।
मिश्र अफ्रीका खंड का ही एक देश है जिसके विषय में "प्राचीन सभ्यायें" में बताया गया है, अब पूरे खंड का एक साथ विचार यहाँ प्रस्तुत है।
बैबिलोनिया तथा ग्रीस तक ईसा पूर्व के कल में जानेवाले भारतीय भूमार्ग से अफ्रीका को भी गत ४००० वर्षों से जाते रहे हैं। वैसे ही वे २५००-३००० मिल का समुद्र पर करते हुए भी गए हैं। अपने साथ वे अपनी संस्कृति भी लेते गए। अनेक धर्माचार्यों, गणितज्ञ तथा अन्य विषयों के विद्वान भारतीय वहाँ जाकर स्थायी निवासी बने। दक्षिण रोडेशिया में भारतीय संस्कृति के अनेक अवशेष मिले हैं। वहाँ के पर्वतीय क्षेत्र में भारतीय शैली कि गुफाएं मिली हैं।
प्रो बीटी ने ३०० अफ्रीकी जमातों का गहराई से अध्ययन कर ई १९६९ में "रिलीजंस, ट्रेडिशंस एंड फिलोसोफी ऑफ़ अफ्रीकंस" पुस्तक लिखी। उसके अनुसार इन अफ्रीकियों कि इश्वर, जन्म-मृत्यु, समाज में स्त्रियों का स्थान, शिक्षा पद्दति आदि विषयक कल्पनाएँ और व्यव्हार भारतीयों के जैसे ही है। उनका विश्वास है कि सृष्टि का आदि तत्व और सृजनशक्ति स्त्रियों में रहती है। भारतीय संस्कृति तथा भारतीयों कि मानसिकता से वे एकरूप दीखते हैं।
भारत कि खोज में जब वास्को-डी-गामा जन अफ्रीका में केप ऑफ़ गुड होप पहुंचा तब वहाँ पर उसने एक भारतीय व्यापारी कि अपनी नौका से तीन गुना बड़ी नौका देखि और उसी भारतीय के मार्गदर्शन से वह अफ्रीका से भारत आया।
देव सरोवर :
मिश्र कि लोकमाता नदी का "नील" नाम शुद्ध संस्कृत है, ऐसा पाश्चात्य अन्वेषक कहते हैं। प्राचीन काल के भारतीयों के भौगोलिक ज्ञान के विषय में जिन्होंने गहरा अध्ययन किया है वे कर्नल विलफोर्ड कहते हैं कि "भारतीय पुराणों में वर्णित शंख कि आकर वाला द्वीप अफ्रीका ही है "। नील नदी के उद्गम के विषय में उन्होंने भारतीय पुराणों के आधार पर "एशियाटिक रिसर्चेस खंड 3" में लिखा है कि "अमर या देव सरोवर में नील नदी का उद्गम है। सरोवर के आसपास के प्रदेश को चांद्रस्थान कहते थे। यह देव सरोवर चन्द्र पर्वतों में है। नील नदी शंखब्दी (भू मध्य सागर) में मिलती है "। पूर्व अफ्रीका और यूरोप का उन्होंने एक मानचित्र बनाया था। उसी मानचित्र और विलफोर्ड के भारतीय पुराणों पर आधारित एक लेख के आधार मर जॉन हेमिंग स्पेक ने नील नदी का उद्गम स्थल ढूंढ निकाला, ऐसा उन्होंने स्वयं लिखा है। देव सरोवर का नाम आज विक्टोरिया लेक है।
Lieutenant Speake, when planning his discovery of the source of the Nile, secured his best information from a map reconstructed out of Puranas. (Journal, pp. 27, 77, 216; Wilford, in Asiatic Researches, III).
It traced the course of the river, the "Great Krishna," through Cusha-dvipa, from a great lake in Chandristhan, "Country of the Moon," which it gave the correct position in relation to the Zanzibar islands. The name was from the native Unya-muezi, having the same meaning; and the map correctly mentioned another native name, Amara, applied to the district bordering Lake Victoria Nyanza.
"All our previous information," says Speake, "concerning the hydrography of these regions, originated with the ancient Hindus, who told it to the priests of the Nile; and all these busy Egyptian geographers, who disseminated their knowledge with a view to be famous for their long-sightedness, in solving the mystery which enshrouded the source of their holy river, were so many hypothetical humbugs. The Hindu traders had a firm basis to stand upon through their intercourse with the Abyssinians."
(source: Periplus of the Erythrean Sea - W.H. Schoff p. 229-230).
Sir Richard Burton, the leader of the Nile expedition, had identified Lake Tangyanika as the source. Speke, however, following upon the advice of a Benares (Varansi) Pundit, insisted that the real source was a much large lake that lay to the north. Following this advice Speke went on to discover Victoria. The Pundit had also told him that the real source were twin peaks as Somagiri, ‘Soma’ in Sanskrit stands for moon and ‘giri’ means peak, and Somagiri therefore are none other than the fabled Mountains of the Moon in Central Africa! The Pundit must have known all this. He published his book Journal of the Discovery of the Source of the Nile in 1863.
(source: Nostradamus and Beyond – N S Rajaram p. 60 - 67).